GSEB Std 10 Hindi Textbook Solutions Chapter 4 एक प्रश्न : चार उत्तर
स्वाध्याय
1. निम्नलिखित प्रश्नों के नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखिए !
प्रश्न 1.प्रत्येक नागरिक को पूर्णतः लगन एवं निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए ।
(अ) ईमानदारी
(ब) बेईमानी
(क) जल्दबाजी
(ड) धीरे-धीरे
उत्तर :
(अ) ईमानदारी
प्रश्न 2. वृद्ध ईसाई पादरी ने कहा
(अ) तुम बड़े आलसी हो
(ब) तुम भिखारी हो
(क) तुम ईमानदार बनो
(ड) तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते ।
उत्तर :
(ड) तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते ।
प्रश्न 3. भगवान की मूर्ति की स्थापना करने के बाद –
(अ) उनके कहे अनुसार चलना चाहिए ।
(ब) मूर्ति की पूजा करनी चाहिए ।
(क) प्रचार-प्रसार करना चाहिए ।
(ड) पुजारीजी के आदेश का पालन करना चाहिए ।
उत्तर :
(अ) उनके कहे अनुसार चलना चाहिए ।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के एक-एक वाक्य में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1. लेखक को किस बात की खब्त है ?
उत्तर :
लेखक को खब्त इस बात का है कि जब वे किसी से मित्रता कर लेते है उसे सहृदय पाकर वे पूछ लेते हैं कि – ‘हमारा देश उन्नति क्यों नहीं कर रहा है?’
प्रश्न 2. कुटुंब व्यवस्था किस प्रकार नष्ट हो गई ?
उत्तर :
हमारे देश में लोग खुद आगे रहना चाहते हैं किसी को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते, इस प्रकार उदारता का अभाव होने से कुटुंब व्यवस्था नष्ट हो गईं।
प्रश्न 3. हम किसकी जय जयकार करते हैं ?
उत्तर :
हमारे देश में बड़े-बड़े नेता हो गए हैं, हम उनकी मूर्ति, की स्थापना करके उनका जय-जयकार करते हैं।
प्रश्न 4. सच्चा देशभक्त कौन हैं ?
उत्तर :
जो अपना कर्तव्य ठीक प्रकार से करता है, वह सच्चा देशभक्त है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के दो-तीन वाक्यों में उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1. हमारे देश में किस प्रकार जागृति आ सकती है ?
उत्तर :
हमारे देश के लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते हैं। इसके अलावा वे अपनी जिम्मेदारी भी नहीं समझते। यहाँ के लोग श्रम का महत्त्व नहीं पहचानते और स्वयं मेहनत करने से परहेज करते हैं। गुणी और जानकार लोगों में उदारता नहीं है। वे अपनी विद्या दूसरों को बताना नहीं चाहते। यदि इन बुराइयों को दूर कर दिया जाए, तो हमारे देश में जागृति आ सकती है।
प्रश्न 2. मनुष्य समाज को संगठित करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?
उत्तर :
मनुष्य-समाज को संगठित करने के लिए हमें अपने नेताओं द्वारा बनाए हुए मार्ग पर चलना चाहिए और उनके आदेशों के अनुसार अपने जीवन का संगठन करना चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा कार्यक्षेत्र चाहे छोटा हो या बड़ा, हम अपने हर काम ठीक प्रकार से करें। इससे हमारा व्यक्तिगत जीवन संगठित होगा। हमारा व्यक्तिगत जीवन संगठित हो जाने के बाद मनुष्य-समाज अपने आप संगठित हो जाएगा।
प्रश्न 3. ‘तुम लोगों में उदारता नहीं हैं’ – कथन का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
यहाँ ‘उदारता’ शब्द का आशय किसी को आगे बढ़ने देने, किसी को अपनी योग्यता दिखलाने का मौका देने, किसी के विकास का मार्ग अवरुद्ध न करने, अपनी विशिष्ट विद्या अपने जीते जी दूसरों को दे जाने, तथा जरूरतमंद को काम सिखाने आदि के बारे में उदार दृष्टिकोण रखने से है। हमारे देश के लोगों में यह उदारता नहीं होती। वे दूसरों को आगे नहीं बढ़ने देते। स्वयं ही आगे रहना चाहते हैं। गुणी नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर नहीं देते। वे अपनी विधा भी किसी को नहीं सिखाते और वह उनके साथ ही खत्म हो जाती है। इससे देश और समाज का बड़ा नुकसान होता है और लोगों को उपयुक्त अवसर पाने से वंचित रह जाना पड़ता है।
4. निम्नलिखित प्रश्नों के सविस्तार उत्तर लिखिए :
प्रश्न 1. ईसाई पादरी ने लेखक के प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दिया ?
उत्तर :
ईसाई पादरी लेखक के विदेशी मित्र थे। उन्होंने लेखक के प्रश्न के उत्तर में कहा कि तुम लोग अपने काम में गर्व नहीं लेते। उन्होंने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि यहां के लोगों की कथनी और करनी में बहुत फर्क होता है। वे नौकरी के लिए दरखास्त देते समय अतिशयोक्तिपूर्ण शब्दों का प्रयोग करते हैं।
अपने मालिक की शुभकामना की प्रतिज्ञा करते हैं। पर नौकरी मिलते ही वे अपनी जीविका को ही खराब समझने लगते हैं। वे अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर काम खराब करने के लिए षड्यंत्र रचने लगते हैं और मालिक को हैरान कर डालते हैं। अन्य देशों में लोग साधारण शब्दों में नौकरी के लिए दरखास्त देते हैं और जब स्थान मिल जाता है, तो वे बड़ी निष्ठा और लगन से काम करते हैं। हमें इस बात पर ध्यान देना जरूरी है।
प्रश्न 2. वृद्ध सरकारी कर्मचारी ने लेखक के प्रश्न का उत्तर किन-किन उदाहरणों से समझाया ?
उत्तर :
वद्ध सरकारी कर्मचारी लेखक के मित्र थे। लेखक ने जब उनसे अपने देश के उन्नति न करने का कारण पूछा, तो उन्होंने उत्तर दिया कि आपके देश के लोगों में जिम्मेदारी की भावना नहीं है। लोग दूसरों के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं जानते। लिए गए काम को पूरा करने का गुण लोग भूल गए हैं। इसलिए किसी को किसी पर विश्वास नहीं है। खाने की दावत हो, तो मेजबान को यह विश्वास नहीं होता कि मेहमान समय से आएँगे और मेहमान को यह विश्वास नहीं होता कि समय पर जाने से खाना मिल जाएगा।
गृहस्थ को यह विश्वास नहीं होता कि धोबी और दरजी वादे पर कपड़े दे जाएंगे और धोबी और दरजी को यह विश्वास नहीं होता कि उन्हें समय पर दाम मिल जाएंगे। रेलगाड़ी से यात्रा करनेवाले को विश्वास नहीं होता कि पहले से बैठे यात्री उसे स्थान देंगे और पहले से बैठे यात्रियों को यह विश्वास नहीं होता कि आनेवाला यात्री आने पर व्यर्थ का शोर नहीं मचाएगा। पैदल चलनेवाले को यह विश्वास नहीं होता कि आगे चलनेवाला व्यक्ति अपना छाता इस तरह खोलेगा कि छाते की नोक से उसकी आँख न फूट जाएगी।
आगे चलनेवाले व्यक्ति को यह विश्वास नहीं होता कि पीछेवाला व्यक्ति उसे धक्का नहीं देगा। किसी को किसी पर यह विश्वास नहीं कि केले, नारंगी का छिलका या सुई, पिन आदि इस तरह वह न छोड़ेगा, जिससे दूसरों को कष्ट पहुंचे। यहां के लोग अपनी तात्कालिक सुविधा देखते हैं। दूसरों के प्रति वे अपने कर्तव्यों का अनुभव नहीं करते।
प्रश्न 3. एक बड़ी वृद्धा स्त्री ने प्रश्न का उत्तर किस प्रकार दिया ?
उत्तर :
एक बड़ी विदेशी महिला का लेखक के परिवार से बड़ा प्रेम था। उन्होंने अपने 40 वर्ष देश की विविध सेवाओं में लगा दिए थे और यहां के बारे में उनका अच्छा अनुभव था। लेखक के प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि भारत के लोगों में उदारता नहीं है। इसलिए वे खुद ही आगे रहना चाहते हैं और दूसरों को आगे नहीं बढ़ाते।
हमारे देश में अनेक गुणी नवयुवक हैं। वे इन नवयुवकों को अपनी योग्यता दिखाने का मौका नहीं देते। वे अपने गुण दूसरों को नहीं सिखाते और मरने के बाद उनका गुण व्यर्थ हो जाता है। यहाँ अंत तक पिता पुत्र को घर का काम नहीं बतलाता। इसके कारण अनेक कुटुंब नष्ट हो गए। देश में भी यही हालत है- बड़ा छोटों को काम नहीं सिखाता। इसका परिणाम यह हुआ है कि लोगों की प्रतिभा धरी की धरी रह जाती है और उसका उपयोग नहीं हो पाता। इस प्रकार अनेक आविष्कार, औषधियाँ और वैज्ञानिक लुप्त हो जाते हैं।
प्रश्न 4. देश को कैसे नागरिकों की आवश्यकता है और क्यों ?
उत्तर :
किसी भी देश की उन्नति उसके गुणी, परिश्रमी, निष्ठावान, जिम्मेदार, उदार तथा विवेकशील नागरिकों पर आधारित होती है। हमारे देश को ऐसे सच्चे और ईमानदार नागरिकों की आवश्यकता है, जिनकी कथनी और करनी में अंतर न हो। वे जो काम लें, उसे निष्ठापूर्वक संपन्न करें। साथ ही उन्हें दूसरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास होना जरूरी है। प्रत्येक नागरिक को श्रम का महत्त्व समझना चाहिए और यह बात मानकर चलना चाहिए कि संसार में कठिन परिश्रम के बिना कभी किसी को कुछ नहीं मिलता है। संसार में जो भी बड़े हुए हैं, वे सब अथक परिश्रमी रहे हैं। देश को अथक परिश्रम करनेवाले नागरिकों की आवश्यकता है।
इसके अलावा नागरिकों में उदारता का गुण होना भी आवश्यक है। उनमें नवयुवकों को आगे बढ़ाने की उदारता होनी चाहिए। वे लोगों की काम सीखने में मदद करें। लोग ऐसे हों, जो अपने गुण, अपनी कला लोगों को देने में संकोच न करें। देश को ऐसे ही कर्मठ और उदार नागरिकों की आवश्यकता है।